नदीन गोर्डिमर
(रंगभेद के खिलाफ एक गुरिल्ला कल्पना-शक्ति)
विनोद तिवारी
Colonialism is not satisfied
merely with holding a people in its grip and emptying the native’s brain of all
form and content. By a kind of perverted logic, it runs to the past of the
oppressed people, and distorts, disfigures and destroys it.
उपनिवेशवाद केवल इसी बात से संतुष्ट नहीं हो जाता कि उसने उपनिवेशित लोगों को
अपने अधिकार एवं नियंत्रण में ले लिया है और वहां के लोगों के मन-मस्तिष्क में
मौजूद सभी तरह के रूपों व छवियों से पूरी तरह उन्हें खोखला कर दिया है | इससे आगे;
वह एक विकृत सोच के तहत दमित-शोषित लोगों को उन्हीं के भूत से हांकता है और उनकी
पहचान से उन्हें विरूपित कर विनष्ट कर देता है |
-
Frantz Fanon
पूरी दुनिया में उपनिवेशवादी साम्राज्यवाद के दमन, शोषण, अत्याचार और लूट का दंश
जिन देशों ने झेला है उनमें अफ्रीका का इतिहास काफी लम्बा है | शताब्दियों तक यह
देश गुलामी, दासता और नृशंस शोषण का उपनिवेश बना रहा | विकसित कहे जाने वाले पहली
दुनिया के देशों ने अफ़्रीकी, एशियाई और लातीन अमरीकी देशों और वहां के काले, पीले
और मिश्रित रंग के लोगों के प्रति नस्लभेद और रंगभेद की अमानवीयता का जो सभ्य (?)
खेल खेला वह मनुष्यता के इतिहास का सबसे नियोजित घिनौना और बर्बर उदहारण है | इस
पूंजी आधारित बर्बर सभ्यता ने उपनिवेशित देशों और वहां के मूल निवासियों के ऊपर जो
कानून और व्यस्थाएं लादीं वह निश्चित ही अन्यायपूर्ण, निर्दयी और मनुष्यता के
इतिहास में सभ्य-प्रवाह के विपरीत थीं | प्रगति, विकास, सभ्यता, शासन आदि के नाम
पर साम्रज्यवादी शक्तियों ने दुनिया भर में जो ‘पाठ’ बनाया वह कितना झूठा और
बेमानी था इसकी पोल आज खुल चुकी है | इंटरनेशनल
कांफ्रेंस सेंटर, हवाना, क्यूबा में साउथ सम्मिट के समापन सत्र में 14 अप्रैल
2000को दिए गए अपने भाषण ‘तीसरी दुनिया की एकता’ में फिदेल
कास्त्रो का यह कथन देखा जाना चाहिए - “वे यह भूल जाते हैं कि जब योरोप में ऐसे लोगों का
वास था जिन्हें रोमन साम्राज्य वहशी कहता था उस समय चीन, भारत, मध्य-पूर्व, तथा
दक्षिण और मध्य-अफ्रीका में सभ्यताएं थीं और उन्होंने उन चीजों का सृजन कर दिया था
जिन्हें दुनिया के अजूबे कहा जाता था | यूनानियों द्वारा पढ़ना सीखे जाने और होमर
द्वारा इलियड लिखे जाने से पहले उन्होंने लिखित भाषाएँ विकसित कर ली थीं | हमारे
अपने गोलार्द्ध में ‘माया’ और ‘इंका’ पूर्व सभ्यताओं ने वह ज्ञान अर्जित कर लिया
था जिससे आज भे दुनिया चकित रह जाती है |” (नव उदारवाद का फासीवादी चेहरा - फिदेल कास्त्रो, हिंदी
अनुवाद - रामकिशन गुप्ता, ग्रंथशिल्पी, दिल्ली)
उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में तीसरी दुनिया का पूरा साहित्य साम्रज्यवादी शोषण,
लूट, आत्याचार और बर्बरता के विरुद्ध संघर्ष का साहित्य है | बीसवीं में
दक्षिण-अफ्रीका ने जो महत्वपूर्ण लड़ाकू नेता और साहित्यकार दिए हैं; जिन्होंने
नस्लभेद और रंगभेद जनित असमानता और अमानवीयता के विरुद्ध लडाईया लड़ी हैं; उनमें
नोबेल सम्मान से सम्मानित कथाकार नदीन गोर्डिमर काम अत्यंत महत्व का है | उनके इस महत्पूर्ण
योगदान के लिए उन्हें 1991 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से नवाजा
गया | यह पुरस्कार पाने वाली वह विश्व की सातवीं महिला और दक्षिण अफ्रीका की पहली साहित्यकार
थीं | 20 नवम्बर 1923 में दक्षिण अफ्रीका के सोने की खान वाले एक
छोटे से शहर स्प्रिंग्स, ट्रांसवाल में नदीन गोर्डिमर का जन्म एक निम्न मध्यवर्गीय
यहूदी परिवार में हुआ | 90 वर्ष का सक्रिय रचनात्मक जीवन जीने के
बाद 14 जुलाई 2014
को उनका निधन हो गया | उनकी माता हन्नाह म्येर्स लन्दन की
थीं और पिता इसिडोर लातिवियन थे | पिता ने लातिविया किशोरवय में ही छोड़ दिया और
अपने बड़े भाई के पास रोजगार की तलाश में दक्षिण अफ्रीका आ गए थे | घड़ीसाज के रूप
में उन्होंने अपने भाई के साथ काम शुरू किया बाद में खुद की अभोषणों की दूकान खोल
ली | अंग्रेजी- भाषी और श्वेत होने के कारण अन्य दक्षिण अफ्रीकी श्वेत परिवारों की
तरह उन्हें भी कुलीनता और उच्चता के वे सारे अधिकार मिले थे जो ‘रूलिंग कास्ट’ के
नाते गोरों की सरकार और सत्ता ने अपने लिए बना रखे थे | पर; इस विशेष सुविधा
प्राप्त प्रभु-वर्ग का होने के नाते गोर्डिमर को अपने परिवार में ही नजदीक से उस
मानसिकता को जानने-समझने का मौका मिला जो बाद में उनकी रचनाओं की संवेदनात्मक
आधारभूमि प्राप्त करता है |
नदीन गोर्डिमर की पढाई-लिखाई में उनकी
माँ का विशेष हाथ रहा | स्प्रिंग्स में ही एक कैथोलिक कान्वेंट स्कूल से उनकी
पढाई-लिखाई हुयी | अपनी पढाई-लिखाई का सबसे अधिक श्रेय वे उस छोटे से शहर में
मौजूद पुस्तकालय को देती हैं जिसके बारे में उनका कहना है कि, बिना उस पुस्तकालय
के शायद उनका लेखक बनना संभव न होता | उच्चशिक्षा के लिए उन्होंने विट्स
विश्वविद्यालय, जोहान्सबर्ग में प्रवेश लिया | पहली बार यहीं पर उन्होंने अपने ‘कलर बार’ से
बाहर अश्वेत लोगों से दोस्ती कायम की | जोहान्सबर्ग से ही लगे एक सबर्ब ‘सोफियाटाउन’
में उनका परिचय कई दक्षिण-अफ्रीकी अश्वेत लेखकों और बुद्धिजीवियों से हुआ जिनमें
एस्किया माफ्हेले, नात नकासा, टॉड मात्शिकिज़ा लेविश न्कोसी जैसे प्रमुख लोग थे |
गोर्डिमर ने बीच में ही अपने पढ़ाई छोड़ दी और जोहान्सबर्ग में ही बसने का निर्णय
लिया | गोर्डिमर ने दो शादियाँ कीं | पहले पति गेराल्ड गैव्रोन से एक लड़की हुयी | 1954 में उन्होंने दूसरी शादी एक पूंजीपति व्यवसायी रेनाल्ड कैसिरर से की जिससे एक
लड़का है | रेनाल्ड नाज़ी जर्मनी के समय के एक शरणार्थी थे और दूसरे विश्वयुद्ध में
अंगरेजी सेना की और से लड़ाई में शामिल हुए थे |
नदीन गोर्डिमर ने बीसवीं शताब्दी के चौथे
दशक से अपना लेखन कार्य शुरू किया | जब वे 15 साल की थीं तब
उनकी पहली कहानी प्रकाशित हुयी | इस कहानी के सन्दर्भ के लिए वे गोरी चमड़ी वालों
का काले लोगों के प्रति जो अमानवीय भेदभावपूर्ण बर्ताव था उसका जिक्र करती हैं
जिनके चलते बाल मन में काले लोगों के प्रति एक ऐसी संवेदना ने जन्म लिया जो जीवन
भर उनके हक़ और अधिकार की पुरजोर लड़ाई लड़ता रहा | अपने बचपन की दो घटनाओं का जिक्र
करते हुए बताती हैं कि कैसे इन दो घटनाओं ने उनके बाल-मन को झकझोर कर रख दिया था |
पहली घटना के सम्बन्ध में वे बताती हैं कि जब वे आठ साल की थीं तो एक बार अपने
कान्वेंट स्कूल में छुट्टी के समय निकल कर घूमते हुए थोडा आगे की ओर निकल गयीं जहाँ
सोने की खानों में काम करने वाले काले मजदूरों की बस्ती थी | घर आकर माँ से उन्होंने
जब यह बताया तो बहुत ही सख्ती के साथ उन्हें चेताया गया कि भूलकर भी उधर मत जाना
अन्यथा वे लोग तुम्हारे साथ बहुत बुरा बर्ताव कर सकते हैं | गोर्डिमर कहती हैं की,
अब मैं सोचती हूँ तो बहुत गुस्सा आता है कि क्या सचमुच, वे काले मजदूर इसी ताक में
बैठे रहते हैं कि कब कोई गोरी चमड़ी वाली लड़की दिखे और वे उस पर टूट पड़ें | दूसरी
घटना तब की है जब वे ग्यारह या बारह साल की थीं | एक जनरल स्टोर में मान के साथ
कुछ सामान कह्रीदाने गयी थीं | वहां उन्होंने देखा कि काले लोगों के लिए रस्सी के
सहारे एक कतार्नुमा बनाया गया है और आगे के सिरे पर जाकर उस रस्सी को एक बैरियर की
तरह घेरकर बाँध दिया गया है जिसके आगे काले लोग नहीं जा सकते हैं | वे वहीँ से जो
भी सामन चाहिए उसे चिल्लाकर मांगते और एक टोकरी में वह सामन उनके पास पहुंचा दिया
जाता था उसी टोकरी में वह उस सामन की कीमत रख देते थे | गोरे लोगों की तुलना में न
तो स्टोर में सामान तक उनकी पहुँच संभव थी न भुगतान के लिए काउंटर तक ही वे जा
सकते थे | उन्हें जानबूझकर दूर रखा जाता था | इस नस्ली असमानता और अन्याय से नदीन
गोर्डिमर बहुत बेचैन होती थीं | नस्ली भेदभाव तो दक्षिण अफ्रीका में औपनिवेशिक काल
से ही चला आ रहा था | पर रंगभेद की नीति को तो 1948 में गोरे लोगों की
सरकार ने बाकायदा कानून बनाकर सरकारी नीति के तहत लागू किया | इस नए क़ानून में
लोगों को चार समूहों में बांटा गया – काले, गोरे, मिश्रित और भारतीय | इन समूहों
के लिए अलग –अलग रिहाईशी क्षेत्र निर्धारित किये गए | इन सबके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य नागरिक
सुविधाओं में पर्याप्त भिन्नता और असमानता रखी गयी | सबसे बुरी हालत काले लोगों की
ही थी | बीसवीं शताब्दी के छठे दशक से दक्षिण अफ्रीका में जो आन्दोलन शुरू हुआ वह
इसी अन्यायपूर्ण और अमानवीय सरकार और क़ानून के खिलाफ था |
नदीन गोर्डिमर ने अपनी कलम की ताकत और
कल्पना-शक्ति से इस बर्बर यथार्थ को शसक्त रचनात्मक आवाज दी | उन्होंने इस नस्ली
भेदभाव और रंगभेद को दूर करने संबंधी अपनी सोच और सपने को ऐसी ताकत दी कि रंगभेद
के खिलाफ उनके लेखन को खतरनाक समझा जाने लगा | उनकी कई किताबें सेंसर और
प्रतिबंधित हुयीं | यह कार्य उन्हीं गोरे प्रभु-वर्ग के लोगों ने किया जो उन्हें
अपने वर्ग का मानते थे | पर इससे उनकी आवाज मद्धिम नहीं हुयी वरन वह और ताकतवर
होकर सामने आयी | जब उनके उपन्यास ‘दि कन्ज़र्वेस्निस्ट’ (1974) को जब बुकर सम्मान मिला तो पहली बार दुनिया की नजरों में उनका लेखकीय संघर्ष
और प्रतिरोध सामने आया | 1991 में जब उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार
मिला तो पूरी दुनिया के साथ खुद दक्षिण अफ्रीका में वे महत्वपूर्ण लेखक के रूप में
स्वीकृत हुयीं | स्वीडिश एकेडेमी ने पुरस्कार दते समय यह कहा कि, “ नदीन गोर्डिमर ने अपने देश दक्षिण
अफ्रीका के नस्लभेद संबंधी सचाई को सामने लाने वाले महाख्यान रचे हैं |” सच तो यही है कि, गोर्डिमर ने जीवन भर
दक्षिण अफ्रीका की समस्याओं को ही अपने लेखन का केंद्र बनाया | 1991 में रंगभेद के खिलाफ लम्बी लड़ाई के बाद जब नेल्सन मंडेला को जेल से रिहा किया
गया और पूरी दुनिया में जीत का जश्न मनाया गया तो एक साक्षात्कारकर्ता ने जब उनसे
यह पूछा कि, अब अप क्या करेंगी अब तो आप के लेखन का जो एजेंडा था, जो मोटिव्स थे
वो पूरे हुए | गोर्डिमर का जवाब था “क्या सचमुच दक्षिण अफ्रीका के लोगों की समस्याएं खत्म हो गयीं ? अभी तो उनके
जीवन-स्तर की कई अनेक समस्याएं हैं जिनसे लड़ना बाकी है |” सच में, गोर्डिमर का बाद का लेखन सेक्स और
एड्स की समस्या, राजनितिक दमन, भ्रष्टाचार आदि समस्यायों को केंद्र बनाता है | गोर्डिमर
अपने समय की विश्व की सर्वाधिक राजनीति-चेतना संम्पन्न उपन्यासकार हैं | नेल्सन
मंडेला उनके अछे मित्रों में से थे | वे अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC) की एक जुझारू सदस्य थीं | पार्टी के भीतर अपनी सोच और सही मंतव्यों के नाते
उनकी एक महत्वपूर्ण जगह थी | 1994 में जब पहली बार
जब स्वतंत्र चुनाव हुए तो उन्होंने बढ़-चढ़ कर उसमें भागीदारी की | जोहान्सबर्ग में
अपने क्षेत्र में ‘जैकब जुमा’ के साथ चुनाव प्रचार किया | अब नयी सरकार से उनकी
उम्मीद थी कि, एक बेहतर संविधान बने, नाक्रिक अधिकारों का एक विश्व-स्तरीय क़ानून
बनाया जाय दक्षिण अफ्रिका एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बने | पर, ऐसा संभव नहीं हुआ | जब ‘स्टेट इन्फोर्मेशन बिल (AKA)’ लाया गया तो गोर्डिमर ने इसका खुलकर विरोध किया | यह बिल खुलेआम भ्रष्टाचार को
प्रश्रय देता था और भ्रष्टाचारियों के पक्ष में जाता था | वह थाबो मबेकी के प्रशंसकों
में से थीं पर नहीं, उन्होंने ‘कांग्रेस’ छोड़ दी | नदीन ने अपने उपन्यास ‘नो टाइम
लाइक प्रेजेंट’ (2012) में इसका पुरजोर क्रिटिक रचा है |
लगभग 75 साल के अपने लम्बे
रचनात्मक जीवन में नदीन गोर्डिमर ने कुल 200 कहानियां और 30 उपन्यास लिखे हैं | उनकी सभी कहानियाँ पांच संकलनों- ‘नॉट फॉर पब्लिकेशन’ (1965), ‘लिविंगस्टोन’स कम्पेनियन’ (1971), ‘जम्प’ (1991), ‘लूट’ (2003) और ‘लाईफ टाइम’ (2011)
में संकलित हैं | उनकी ‘कामरेड्स’ और ‘लूट’ कहानियाँ खूब
चर्चित हुयी थीं | ‘कामरेड्स’ तो पेंगुइन द्वारा प्रकाशित ‘इंटरनॅशनल विमेंस शार्ट
स्टोरीज’ में भी संकलित है | इसके अलावा उनका वह आलोचनात्मक लेखन ओर अभिमत भी है
जो स्टीफन क्लिंगमैन के सम्पादन में ‘दि एसेंशियल जेस्चर’ (1988) में संकलित हैं | उनका पहला प्रकाशित उपन्यास ‘दि लाइंग डेज’ (1953) है | यह एक अर्द्ध-आत्मकथात्मक उपन्यास है जिसमें खंडित होते,
ढहते औपनिवेशिक पृष्ठभूमि को चित्रित किया गया है | इसके बाद गोर्डिमर ने तीन उपन्यास दिए - ‘ए वर्ल्ड ऑफ स्ट्रेन्जेर्स’ (1958), ‘ऑकेजन फॉर लविंग’
(1963), और ‘दि लेट बोर्जुवा’ ज वर्ल्ड’ (1966) | अब तक गोर्डिमर को लगता था कि
उन्होंने एक ऐसा रास्ता चुना है जिस पर शायद उन्हें अकेले चलना है क्योंकि समकालीन
दक्षिण अफ्रीकी कथाकारों के बीच उनकी कहीं कोई जगह नहीं थी उन्हें बाहरी ही माना
जाता था, एक तो अपने औपन्यासिक एजेंडे के कारण दूसरे अंगरेजी भाषा के कारण | पर, उनके
उपन्यास ‘दि लेट बोर्जुवा’ ज वर्ल्ड’ के
प्रकाशित होने के साथ ही एक उपन्यास के रूप में उनके औपन्यासिक क्षमता को
धीरे-धीरे स्वीकृति और मान्यता मिलने लगी | इस उपन्यास में गोर्डिमर एक आतंरिक
आलोचक की तरह एक ऐसे समय को खरोंचती हैं जिसमें पूरा बोर्जुआ समाज प्रश्नांकित
होता है | इस उपन्यास में गोर्डिमर पहली बार औपनिवेशिक दायरे के सीमित प्रेम,
नैतिकता और भ्रष्टाचार के जेनर से बाहर निकलती हैं | अपने कहन के लिए जिस एस्थेटिक
की वो लगभग दो दशकों से तलाश कर रही थे अब वह साधता हुआ दिखता है | एक तरह से यह
उपन्यास नेल्सन मंडेला के सत्याग्रह के जज्बे को परिलक्षित करता है | अपने
उपन्यासों में अब तक जो एक ‘लिबरल-कंजर्वेटिव’ वाली पोजीशन अख्तियार करती दिखती थीं
वह टूटता है | उनके अगले उपन्यास (जिसपर संयुक्त रूप से उन्हें बुकर सम्मान मिला)
‘दि कन्जर्वेस्निस्ट’ (1974) में तो वह एक रेडिकल मॉडर्निस्ट के रूप
में प्रकट होती हैं | अब वह उन सचाईयों को खरोंचती हैं, उनको सामने ले आती हैं जो खुद उन्हीं के वर्ग और समुदाय की सचाईयाँ हैं | ‘न्यूयार्क
टाइम्स’ में एक साक्षात्कार के दौरान पूछे गए इस सवाल का कि, ‘अब आपके ही जो
‘लिबरल’ विचार वाले लोग हैं आपके बारे में क्या सोचते हैं ?’ उनका जवाब था, ‘मैं
पैदाईशी श्वेत हूँ पर मैं लिबरल नहीं हूँ | फिर तत्क्षण उनका वाक्य था ‘ आई एम
लेफ्टिस्ट माई डियर’ | ‘दि कन्जर्वेस्निस्ट’ एक पूंजीपति फार्म के मालिक मेहरिंग
की कहानी है | इस फार्म में एक बड़े व्यवसायी का बड़ा इन्वेस्टमेंट है | उसने टैक्स
बचाने के लिए यह इन्वेस्टमेंट किया है | यह वह ‘ब्लैक मनी’ है जिसे उसने टैक्स
बचाने के लिए इन्वेस्ट किया है | उसकी वामपंथी पत्नी यह सब जानती है फिर भी वह
उसका संरक्षण करती है | मेहरिंग अपने फार्म में काम करने वाले काले लोगों के साथ
अनेकशः बर्बर और अमानवीय व्यवहार करता है | इस किये का उसे कोई पछतावा भी नहीं वरन
वह बार इसे वैध और ठीक ठहराता रहता है | ‘इन पर शासन करने के लिए ही हमें बना या
गया है’ यही उसका टोन है | यह ‘टोन’ केवल मेहरिंग का ही नहीं वरन उस पूरी 13 प्रतिशत गोरी आबादी का ‘टोन’ है जो काले लोगों पर शासन करने के लिए ही बनाये
गए हैं | यह उपन्यास नौकर और मालिक के रिश्तों का ऐसा दस्तावेज है जिसे गोर्डिमर
बहुत समय से चित्रित करने का साहस कर रही थीं पर कह पायीं इस उपन्यास में | उनका अगला उपन्यास
‘बर्गर’स डाटर’ (1979) एक बहुत ही शसक्त राजनितिक उपन्यास है | यह उपन्यास उनके अफ्रीकी मित्र और
नेल्सन मंडेला के साथ साथ रंगभेद के खिलाफ संघर्ष करने वाले अन्य अफ्रीकी लोगों की
कानूनी लड़ाई लड़ने वाले वकील ब्रैम फिशर को फोकस कर लिखा गया है | यह उपन्यास एक
तरह से साहित्यिक विधि-संहिता है जिसे गोर्डिमर ‘कोडेड होमेज़’ के रूप में प्रस्तुत
करती हैं | दक्षिण-अफ्रीकी सरकार ने गोर्डिमर के जिन कुछ उपन्यासों को प्रतिबंधित
किया उनमें से यह भी एक है | माना जाता है कि, यह गोर्डिमर के उपन्यासों में
सर्वाधिक मुखरराजनितिक उपन्यास है | 1981 में नौकर और मालिक
के रिश्तों पर उनका एक अन्य उपन्यास ‘जुलाई’स पीपल’ (July’s people) आता है | यह उपन्यास रंगभेद के खिलाफ काले लोगों द्वारा भविष्य में
होने वाले भीषण विद्रोह का बहुत ही मुखरता से एक ‘रोड मैप’ प्रस्तुत करता है |
उपन्यास में दक्षिण अफ्रीका की अश्वेत पुलिस अपने ही लोगों को गिरफ्तार करने से मन
कर देती है | सभी तरह की नागरिक सुविधाएं ठप्प कर दी जाती हैं | संघर्ष केवल शहरों
तक ही नहीं सीमित रहता वरन गाँवों तक फ़ैल जाता है | इस बार विद्रोही पूरी तरह से
खूनी लड़ाई की तैयारी कर चुके हैं | उनके पास भारी मार्क क्षमता वाले शस्त्र और
हवाई जहाज हैं | वे अपने पड़ोसी अश्वेत राष्ट्रों – बोत्स्वाना, ज़िम्बाब्वे,
जाम्बिया. नामीबिया और मोजाम्बिक तक इस लड़ाई में एक दूसरे की मदद करते हैं | क्यूबा
और सोयियत संघ उनके इस संघर्ष में मदद पहुंचा रहा है | गोर्डिमर का यह भी प्रतिबंधित किया गया | आरोप यही कि, यह
उपन्यास गृहयुद्ध को जन्म दे सकता है |
वस्तुतः नदीन गोर्डिमर का समूचा साहित्य
दक्षिण अफ्रीका ही नहीं पूरे दुनिया में रंगभेद के खिलाफ संघर्षरत उन करोड़ों लोगों
की आवाज को मुखर करता है जो अपने ही देश में अपनी ही जमीन पर एक ऐसी जिन्दगी जीने
के लिए विवश और बाध्य हैं जिसे कहीं से भी मनुष्य का जीवन नहीं कहा जा सकता | गोर्डिमर
अपने उपन्यासों और कहानियों के माध्यम से उस समाज को गहरे घुसकर छेदती और छीलती
हैं जो सभ्यता, मानवता, आधुनिकता आदि का दंभ भरता है | वह गोर प्रभु-वर्ग के
राजनीतिकों, बुद्धिजीवियों और व्यापारियों के आपसी रिश्ते और चालाकियों को सामने
ले आती हैं | उनकी हिप्पोक्रेसी को वे तार तार करती हैं | गोर्डिमर बड़े ही
रचनात्मक ढंग से पूंजीवाद, उदारवाद और मार्क्सवाद की साझेदारियों और उनके झूठ और
छद्म के व्याकरण को प्रस्तुत करती हैं | वास्तव में गोर्डिमर का पूरा लेखन आधी
शताब्दी के दक्षिण अफ्रीका के समाज और मनोविज्ञान का एक साहित्यिक दस्तावेज़ है
जिसके सहारे आप उस इतिहास को जान समझ सकते हैं जब उपनिवेशी दौर से मुक्त होकर यह
देश 1948 में लोकतान्त्रिक चुनाव की प्रक्रिया के बाद एक नए तरह के अन्याय, शोषण और
दमन के चक्र में मात्र 13%
गोरे लोगों के शासन के अधीन आता है | गोर्डिमर का साहित्य अब तक विश्व की
लगभग तीस भाषाओं में अनुदित हो चुका है | नदीन गोर्डिमर 14 जुलाई 2014
को हमारे बीच से विदा ले चुकी हैं पर इस धरती पर कहीं भी जब
तक जाति, रंग या नस्ल के नाम पर भेदभाव, अन्याय, दमन और शोषण का साम्राज्य बना
रहेगा उनका साहित्य उससे लड़ने और मुक्त होने की प्रेरणा देता रहेगा |
( इस लेख के लिए सारे तथ्य रोनाल्ड सुरेश
रॉबर्ट द्वारा लिखित गोर्डिमर की जीवनी ‘नो कोल्ड किचन’ से लिए गए हैं | कुछ
सन्दर्भ ‘दि गार्डियन’, ‘दि न्यूयार्क टाइम्स’ और ‘टेलीग्राफ’ से लिए गए हैं )
संपर्क: C-4/604, ऑलिव काउंटी, सेक्टर-5, वसुंधरा, गाज़ियाबाद-201012
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