समकालीन सरोकार, मार्च २०१३
एस्पेंदोस : बीते कल की उतरती भव्य सीढ़ियाँ
विनोद तिवारी
पिछले दिनों प्राचीन रोमन साम्राज्य और अब तुर्की गणराज्य
के एक राज्य ‘अनातोलिया’ की यायावरी पर निकला था | अनातोलिया
प्राचीन ग्रीको-रोमन सभ्यता और संस्कृति का वह भूभाग है जो अपने तमाम तवारीखी
चिन्हों और प्रमाणों के साथ आज आधुनिक तुर्की का हिस्सा है | इस प्रदेश
का प्रमुख नगर है ‘अंताल्या’| यह महानगर अपनी ऐतिहासिक और
सांस्कृतिक पहचान के नाते तुर्की की सांस्कृतिक राजधानी भी है | भूमध्य-सागर के किनारे बसा यह नगर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण पिछले साल विश्व
के पर्यटन स्थलों में न्यूयार्क को पीछे धकेल कर तीसरे स्थान पर काबिज हो गया
| योरोप के सैलानियों का यह अत्यंत ही पसंदीदा
जगह है | हम कश्मीर-घाटी के बारे में सुनते आये हैं कि, वहाँ की प्राकृतिक छटा पर
मन्त्र-मुग्ध होकर मुग़ल बादशाह जहाँगीर के मुंह से बेसाख्ता निकला था – “गर फिरदौस बर-रू-ए ज़मीन अस्त/हमीं अस्त, हमीं अस्त (धरती पर यदि कहीं स्वर्ग है तो वो यहीं है, यहीं है) |” सचमुच वह है भी, पर अंताल्या को देखने के बाद लगा कि नहीं
पौराणिक-कथाओं में भले ही एक ही स्वर्ग – देवताओं वाले स्वर्ग – की कल्पना की गयी
हो पर धरती पर एक नहीं अनेक स्वर्ग हैं | अंताल्या की प्राकृतिक
सुंदरता के कारण ही इसे ‘धरती का स्वर्ग’, ‘भूमध्य-सागर का मोती’ और ‘तुर्की का
रिवेरा’ कहा जाता है | इस नगर की स्थापना के पीछे जो पुराना किस्सा प्रचलित है वह
यह है कि, पेर्गियन राजा अतालोस-द्वितीय ने एक समय यह राजाज्ञा जारी की और अपने
मातहतों को चारों दिशाओं में भेजा कि जाओ और मेरे लिए इस धरती पर जो सबसे सुन्दर
जगह हो उसकी तलाश करो जिसे देखकर दूसरे राजा इर्ष्या करें | चारों दिशाओं में
सैनिक भेज दिए गए | वे घूम-घूम कर एक से एक सुन्दर जगह की तलाश करते और राजा से
उसका बखान करते पर राजा को जगह पसंद नहीं आती | दिन, महीने, साल बीतते गए राजा को
कोई जगह पसंद न आये | अंत में सैनिक थक हार-कर भूमध्य-सागर के किनारे पहाड़ों और
पेड़ों से घिरी एक घाटी में आराम करने के लिए रुके | कुछ ही समय में उनकी थकान जाती
रही | उनके सेनापति ने इस जादू का निरिक्षण करना शुरू किया | उस जगह को देखकर वह
अभिभूत हो उठा | उसने मन ही मन पक्का कर लिया कि यह जगह अतालोस-द्वितीय को जरूर
पसंद आयेगी | वह राजा के पास आया और उसने भूमध्य-सागर के किनारे की इस प्राकृतिक
छटा का वर्णन राजा से किया | राजा ने इस सुंदरता खुद चलकर देखने की इच्छा जाहिर की
| जब वह सैनिकों के साथ वहाँ पहुंचा तो वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर दंग रह
गया | भूमध्य-सागर का अथाह, अछोर नील-विस्तार उसके ऊपर आसमान का नीला परिधान जिसका
किनारा पीताभ-रेत से रंगा हुआ, दूर तक पहाड़ियों और प्राकृत हरे-भरे पेड़-पौधों की
निर्मल, बेदाग़ और आकृष्ट करने वाली सुंदरता ने अतालोस-द्वितीय को इस कदर मोहित
किया कि उसने तुरंत आदेश जारी किया कि स्वर्ग की तरह इस अत्यंत मनोरम जगह पर शीघ्र
ही सर्व-सुविधा-संपन्न नगर का निर्माण कराया जाय | निर्माण के बाद राजा के सम्मान
में इस नगर का नाम रखा गया – ‘अत्तालिया’ (या अट्टालिया) | बाद में यही अत्तालिया
अंताल्या हो गया |
पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं
कि यह भूखंड आद्य-ऐतिहासिक पलियोलिथिक-युग में ‘पाम्फिलिया’ का हिस्सा रहा होगा |
अंताल्या के राष्ट्रीय संग्रहालय में सेरामिक और पत्थर के जो भांड रखे गए हैं उनके
आधार पर पुरातत्वविद इसके निर्माण का समय 3000 B.C.
मानते हैं, कांस्य-युग के पहले | ईसा-पूर्व तेरहवीं शताब्दी से यहाँ हित्ती-साम्राज्य का इतिहास मिलने लगता है
| ईसा-पूर्व छठी शताब्दी में यह फारसियों के अधिकार में आता है और ईसा-पूर्व
३३४-३३ में सिकंदर के आक्रमण से पूर्व तक उनके अधिकार में रहता है | ईसा-पूर्व
३३४-३३ में यहाँ सिकंदर महान के नेतृत्व में यूनानी-साम्राज्य का परचम लहराता है |
सिकंदर की मृत्यु के बाद उसके सेनापतियों, पहले एन्तिगोनस और उसके बाद टालेमी यहाँ
शासन करते हैं | बाद में यह ईसा-पूर्व ७७ में रोमनों के आधिपत्य में आता है और
आजकल तुर्की गणराज्य का हिस्सा है | यह तो रहा अंताल्या का एक संक्षिप्त ऐतिहासिक
परिचय |
हमने अंताल्या शहर के अलावा उससे लगे कई महत्वपूर्ण एतिहासिक
स्थलों को देखा | इन्हीं ऐतिहासिक स्थलों में
एक महत्वपूर्ण अवशेष ‘पेर्गे’ है | अंताल्या से १७ किलोमीटर पूरब हेलिनिस्टिक
सभ्यता की निशानी और आक्सू नदी के किनारे बसी पाम्फिलिया की राजधानी ‘पेर्गे’ | आज ‘पेर्गे’ एक ध्वन्साशेष
खँडहर मात्र है और आक्सू नदी अस्तित्व में नहीं है | परन्तु, इन ध्वन्साशेष
खंडहरों को देखकर अनुमान किया जा सकता है कि इनका स्थापत्य अपनी भव्यता और गौरव के
चलते कितना आकर्षक रहा होगा | ग्रीको-रोमन साम्राज्य की वास्तुकला
का अद्भुत नमूना | पेर्गे का ईसाईयों के लिए तीर्थ जैसा महत्व है | ईसाई धर्म के महत्वपूर्ण
प्रचारक और अपने को ईसा का शिष्य मानने वाले सेंट पॉल ने यहीं आक्सू नदी के किनारे
बैठ कर ‘न्यू टेस्टामेंट’ का लेखन पूरा किया | इसलिए यह नगर और नदी ईसाईयों के लिए
एक पवित्र स्थल है | वे पूरी श्रद्धा के साथ आज भी पेर्गे को उसी रूप में महत्व
देते हैं | मशहूर
पेर्गेनियंस में प्रसिद्ध गणितज्ञ और ज्योतिर्विद अपोलोनियस का नाम आता है | अपोलोनियस के अलावा महान दार्शनिक
वारुस का भी पेर्गे से सम्बन्ध था | पेर्गियन साम्राज्य अपने सांस्कृतिक-वैभव के
लिए मशहूर था | कला, दर्शन और साहित्य-संस्कृति का स्वर्णिम काल | वैसे भी
प्राचीन-विश्व के सांस्कृतिक इतिहास में अपनी उन्नत सुरुचि और कलात्मक-अभिज्ञान
में यूनान, मिस्र, रोम और हिदुस्तान का ही नाम आता है | पेर्गे को देखकर
ग्रीको-रोमन भव्यता और गौरव का भान होता है | बाद में पता चला कि यहाँ कई हिन्दी
फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है | कई हिन्दी फिल्मों के गाने यहाँ फिल्माए गए हैं |
पेर्गे के ध्वन्साशेष
खंडहरों में कुछ अवशेष आज भी बचे हुए हैं, तुर्की सरकार ने उनको यथावत सुरक्षित
रखने का हर जतन किया है और उनको उपयोग में लाया जाना संभव किया है | ऐसे ही जतन से
बचायी गयी एक जो सबसे
महत्वपूर्ण जगह है वह है 2000 साल पुराना मुक्ताकाशी थियेटर ‘एस्पेंदोस’ | प्राचीनतम रोमन थियेटरों में से एक जो आज भी अपने अतीत-गौरव के साथ अपनी भव्यता और उत्कर्ष के दिनों की कहानी बयां करता है | रोमन कॉमेडी, ट्रेजेडी और एटलान नाटकों के
भव्य इतिहास और संस्कृति की गवाही देता भव्य निर्माण | कल्पना कीजिये कि इस थियेटर में जब लिवियस अन्द्रोनिकस, प्लाउतस, टेरेन्स, सेनेका,
एनेनियस, होरेस, सिसरो आदि महान कवि-नाटककारों को जब प्रस्तुत किया जाता रहा होगा
तो क्या भव्यता रहती होगी | ‘एस्पेंदोस’ के बारे में जी.ई. बीन ने लिखा है कि, “........अब तक मैंने जो कुछ देखा है इसके जैसा कुछ भी नहीं |” प्रसिद्द ब्रिटिश पुरातत्वविद डी.जी. होगैर्थ का कहना है, “आपने इटली, फ़्रांस, यूनान इत्यादि में वास्तुकला के बहुत ही
आकर्षक नमूने देखे होंगे पर इस थियेटर जैसा वे नहीं हैं |” ‘एस्पेंदोस’ एशिया और अफ्रीका में
रोमनों द्वारा निर्मित थियेटरों में सबसे प्राचीन ऐसा थियेटर है जो आज भी सुरक्षित
है और अभिनय के लिए उपलब्ध है | इसका निर्माण 161-180 ईस्वी में रोमन सम्राट मारकस आरेलियस के समय में हुआ | इसका वास्तुविद् था मशहूर रोमन वास्तुकार जेनो | थियोडोरस का बेटा जेनो | बाद
में राजकुमारी का विवाह जेनो के साथ हुआ | कहा जाता है कि, रोमन सम्राट मारकस ने
यह घोषणा प्रसारित करवाई थी की मैं दो ऐसे निर्माण करना चाहता हूँ जो राज्य के लिए
सबसे लाभप्रद और सुन्दर हो | जिसे लोग देखें तो देखते रह जायं | इनमें से जो सबसे
सुन्दर होगा उसको बनाने वाले कलाकार से मैं अपनी बेटी का विवाह करूँगा | दो
वास्तुविदों ने दो तरह के निर्माण किये | एक ने एक ऐसा जलाशय तैयार किया जो पूरे
नगर को जल उपलब्ध करता था पर जिसके जलस्रोत का पता लगाना मुश्किल था | दूसरे ने एक
ऐसा विशाल मुक्ताकाशी थियेटर बनाया जो अपने वैज्ञानिक और कलात्मक उत्कर्ष का
अद्भुत नमूना है | राजा ने दोनों को देखा और उसे जलाशय पसंद आया | वह राजकुमारी को
जलाशय बनाने वाले कलाकार के साथ ब्याहने का इच्छुक था | पर कहा जाता है कि,
राजकुमारी थियेटर को देखकर इतना मुग्ध हुयी की उसको बनाने वाले कलाकार से वह मन ही
मन प्यार करने लगी | राजा को जब यह पता लगा तो उसने यह निश्चित किया की वह एक बार
दोबारा थियेटर का निरीक्षण करेगा | राजकुमारी भी अपने पिता के साथ थी | वे दोनों
जब बैठने के लिए शिलाओं से बनी अर्ध-वृत्ताकार अति-विशाल सीढियों पर चढ़ते हुई सबसे
ऊपर पहुंचे तो नीचे सबसे बीच में मंच वाली जगह पर जेनो अपने एक दूसरे सहयोगी से कह
रहा था “यह राजकुमारी मुझे चाहती
है, यह मेरी है |” जेनो ने यह बात अत्यंत ही
धीमी आवाज में कही थी पर इसको सबसे ऊपर खड़े राजा और राजकुमारी ने साफ़-साफ़ सुना |
राजा आश्चर्य से भर उठा | ध्वनि संबंधी थियेटर की इस अद्भुत वास्तु-क्षमता ने राजा
को अभिभूत कर दिया उसने तुरंत अपना निर्णय बदलते हुए यह घोषणा की कि, वह अपनी बेटी
का विवाह जेनो के साथ करेगा | और उन दोनों का विवाह उसी थियेटर में भव्य राजसी
वातावरण में संपन्न हुआ | आज भी थियेटर में ध्वनि के लिए अत्याधुनिक यांत्रिक
उपकरणों की जरूरत नहीं पड़ती |
यह मुक्ताकाशी
थियेटर अपनी अद्भुत वास्तुकला से आज भी लोगों को आकर्षित करता है | इसकी खोज ट्रोजन युद्ध के बाद तेरहवीं शताब्दी में हुआ जब तुर्की पर सेल्जुक
तुर्कों का शासन था | खोज के बाद इस अद्भुत वास्तु की मरम्मत प्रसिद्द सेल्जुक
शासक अलादीन कैकुबाद-प्रथम ने कराया | पुनः बीसवीं शताब्दी में तुर्की गणतंत्र के
संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने इसकी मरम्मत और साज-सज्जा कराकर इसे उपयोग में
लाने लायक बनाया | 15 से 20 हज़ार तक लोगों को अपने अंदर स्थान देने वाले इस मुक्ताकाशी थियेटर में आज भी प्रति
वर्ष तुर्की सरकार ‘अन्तराष्ट्रीय ओपेरा और बैले महोत्सव’ का आयोजन करती है | आज भी इस थियेटर में पूँजीपति और प्रभु-वर्ग के लोगों के
वैवाहिक समारोह संपन्न होते हैं | विश्व भर में होने वाले
ओपेरा और बैले उत्सवों में जो शीर्ष दस उत्सव हैं उनमें ‘एस्पेंदोस अंतर्राष्ट्रीय
ओपेरा और बैले महोत्सव’ पांचवें स्थान पर है | जून के महीने में होने वाले इस
महोत्सव में दुनिया भर से दर्शक आते हैं | सत्तर प्रतिशत दर्शक बाहरी ही होते हैं
| दुनिया भर की टीमें यहाँ प्रस्तुति के लिए आती हैं | इसबार का महोत्सव 22 जून से
शुरू होगा | मैंने कार्यक्रम बनाया है कि इसबार एस्पेंदोस का ओपेरा और बैले
महोत्सव जरूर देखूं |
‘एस्पेंदोस’ के अतिरिक्त जो एक अन्य जगह आज भी सुरक्षित है वह है पेर्गे का
स्टेडियम (स्तेदियोन) | ‘एस्पेंदोस’ थियेटर के उत्तर में कुछ ही दूरी पर बना यह
स्टेडियम अपनी वास्तुकला में थियेटर जैसा ही है | इसमें 12 हज़ार लोग एक साथ बैठ सकते हैं | इन अलहदा निर्मितियों से रू-ब-रू होते
हुए, बीते कल की इन उतरती भव्य सीढ़ियों को देख कर अपनी हस्ती में पैबंद रहते हुए
शायर की उस कहन पर थोड़ा ठिठकना पड़ता है जिसमें वह कहता है – “यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से” |
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युवा आलोचक | पक्षधर पत्रिका का संपादन-प्रकाशन | दिल्ली विश्वविद्यालय में
हिन्दी का अध्यापन | आजकल अंकारा विश्वविद्यालय, अंकारा (तुर्की) में विजिटिंग
प्रोफ़ेसर |
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