30 दिसंबर 2012

नाज़िम हिकमत की याद में

बाहरी दुनिया
समकालीन सरोकार, दिसंबर, 2012
सारी व्यथा जीकर



लेखकों को अपने घर ज्वालामुखी के मुहाने पर बनाने चाहिए | - ज्याँ पॉल सार्त्र


जब तुर्की आने न आने का मानसिक द्वंद्व जारी था तब तारीख और जुग्राफिया के तमाम सांस्कृतिक, राजनितिक सवालों-जवाबों के जो पेंचोखम परेशां कर रहे थे वह खतरनाक उतने नहीं थे जितने कि संदिग्ध | संदिग्धता भी किसी सुनिश्चित विचार या व्यवहार के कारण पैदा हुयी हो ऐसा भी नहीं | उलटे बहुत हद तक यह सरलीकरण के सामान्य-ज्ञान से उपजी एक भावना भर थी | पर असमंजस की इस दशा में जो नाम मुझे बार-बार यह याद दिलाते थे कि इनका रिश्ता इसी देश है उनमें नाज़िम हिकमत और ओरहान पामुक हैं | इसके पहले इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते तुर्की को भूगोल के नक़्शे में मुस्तफा कमाल अतातुर्क के जरिये जानता था | पर यह जानना एक अधूरी किताबी जानकारी थी | केवल भूगोल के नक़्शे पर तुर्की गणतंत्र की पहचान | किसी देश को आप उसके भौगोलिक नक़्शे से क्या जान पायेंगे | यह तवारीखी और ज़ुग्राफिकल जानकारियां हमारे काम कि उतनी नहीं होतीं जितनी कि सांस्कृतिक जीवन और रहन | इस सांस्कृतिक जीवन-रहन की समझ के लिए वहाँ का साहित्य आपकी अधिक मदद करता है | ग्राम्शी जिसे सिविल सोसायटीऔर पॉलिटिकल सोसायटीके अंतर्विरोध कहता है उसकी शिनाख्त करने में साहित्य हमारी सहायता करता है | साहित्य के द्वारा समाज और संस्कृति की जहाँ सामान्य वास्तविकताएं हमें उपरी तौर पर दिखती हैं वहीं साहित्य की आंतरिक परतों में वह अंतर्विरोध भी गहरे पैठा रहता है जो किसी भी नागरिक-समाज और सत्ता-तंत्र के रिश्तों की पहचान कराता है | यह सच है कि, एक बड़े ऐतिहासिक बदलाव के दौर में सिविल सोसायटीऔर पॉलिटिकल सोसायटीमें अंतर्विरोध पैदा हो जाय दोनों में धीरे-धीरे पारस्परिक जवाबदेही खत्म होती जाय तो गहरी रिक्तता हमेशा के लिए जड़ जमा लेती है | राजनितिक सत्ता-तंत्र पर काबिज शासक-वर्ग मनोनुकूल विधि-निषेधों को राष्ट्र-राज्य के तथाकथित हित और सुधार और बदलाव और विकास के नाम पर बनाते बिगाड़ते रहते हैं | अगर एजाज अहमद से शब्द लें तो इन सबके लिए कोई टेरेन ऑफ इन्क्वायरी’ ‘सिविल सोसायटीके पास नहीं है | नए-नए बने गणतंत्र में यह अंतर्विरोध और गहरा होता है | खासकर, जब धर्म कहीं न कहीं इस नए राष्ट्र-राज्य की पूरी संरचना में सन्निहित रहता है | इससे लगाव रखने वाली मुखर बुर्जुआजी या यदाकदा इसके हित में अपना रुख व्यक्त करने वाली जो छद्म बुर्जुआजी है वह अपने करतूतों से समय-समय पर असंभव खतरों की संभावना से तंत्र को एलार्मकरती रहती है | किसी भी सिविल सोसायटी में बुर्जुआजी की यह सबसे खतरनाक भूमिका होती है | ओरहान पामुक इस बुर्जुआजी के तीखे आलोचक हैं | जैसा कि, मैंने ऊपर कहा कि मैं तुर्की आने से पहले दो ही लेखकों को जानता था नाजिम हिकमत और ओरहान पामुक | यहाँ आने के बाद धीरे-धीरे पता चला कि, इन दोनों लेखकों पर आप खुलकर बातचीत नहीं कर सकते, लोग कतराते हैं | दुनिया भर में इनकी चाहे जितनी स्वीकृति हो पर तुर्की में उतनी नहीं | नाजिम हिकमत की कहानी तो और दुखद है उनकी मृत्यु के पैंतालीस-छियालीस वर्षों बाद सरकार नाजिम को अपना कवि मानती है और सन् २००९ में उनकी नागरिकता   बहाल करती है |
नाजिम हिकमत ने जेल और देश-बदर होने की जो यातना ज़िंदगी भर उठायी वह हीरोयिक वेदना की एक ऐसी मिसाल है जो लोककथाओं के मिथक की तरह लगता है | नाज़िम हिकमत की कविता एक विचार है | वह कोई भौगोलिक सीमा-रेखा नहीं तय करती | नाज़िम कि कविता सभी तरह की भौगोलिक और तथाकथित राष्ट्र-राज्यकी तमाम हदबंदियों से पार वैश्विक जमीन पर बेख़ौफ़ जीवन का सपना देखने और उस सपने को हकीकत में बदलने लिए अपने सारे वजूद को मिटा देने वाली नुमायिन्दगी का एक अलहदा नजीर है | बीसवीं शताब्दी की विश्व-कविता का एक ऐसा रौशन चेहरा जिसे पाब्लो पिकासो भी चाहता है, ज्याँ पॉल सार्त्र भी जिसकी तरफदारी करता है, लुई अरांगा भी जिसे प्रेम करता है और पाब्लो नेरुदा भी जिसे अपना हमनवां मानता है | दुनिया भर के मजलूमों और मासूमों के हक में नाजिम की कविता एक उम्मीद की तरह है | कभी मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने कहा था कि, वह एक उद्देश्य लेकर कविता लिखता है | पर बाद में वही सोद्देश्य लेखन देश के लिए खतरनाक बन गया नाजिम हिकमत को जेल में डाल दिया गया और उनका साहित्य प्रतिबंधित कर दिया गया | कमाल अतातुर्क ने धर्म केंद्रित पारंपरिक राज्य प्रणाली की जगह एक सेक्युलर आधुनकि राष्ट्रीय-राज्य व्यवस्था कायम की पर दुर्भाग्य बस इस सेक्युलर राज्य में एक कम्युनिस्ट कविकलाकार के लिए जगह नहीं थी | दरअसल, ‘प्रो नेशन-स्टेटबुर्ज़ुवाजी हमेशा से ही तरह-तरह का प्रौपैगेंडा रच कर ऐसे कलाकारों के विरूद्ध शासक-वर्ग को मानसिक स्तर पर तैयार करती है की अमुक व्यक्ति और उसकी कला देश की एकता के लिए खतरा बन सकते हैं | कम्युनिज्म एक तरह की भयंकर छूत की बीमारी है जो युवाओं को भरमाता है और उन्हें नष्ट कर देता है | तुर्की ने तो इसी एकता के नारे को बुलंद कर ऑटोमन साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया और नए-नए आधुनिक गणतंत्र की स्थापना की थी |  
नाजिम हिकमत और अतातुर्क दोनों ऑटोमन साम्राज्य में एक ही गाँव में पैदा हुए | अतातुर्क पहले नाजिम हिकमत उनसे बीस साल बाद | दोनों अपने-अपने क्षेत्र में शीर्ष पर पहुंचे | एक ने एक राष्ट्र-राज्य का सपना देखा उसे पूरा किया दूसरे ने समूची मानवता और विश्व-शान्ति के लिए अपने को मिटा दिया | जिस गाँव में ये दोनों पैदा हुए वह गाँव सालोनिकाअब यूनान में है | पहले विश्व-युद्ध के बाद तुर्की के भूगोल को यूनान, जर्मनी, इटली और ग्रेट-ब्रिटेन ने आपस में बाँट लिया था | नाजिम हिकमत एक अभिजात-कुलीन परिवार में पैदा हुए थे | उनके पिता विदेश-सेवा में उच्च अधिकारी थे माँ संगीत में पारंगत | नाजिम हिकमत के दादा ऑटोमन साम्राज्य में सेना के एक उच्चा अधिकारी थे वे कवितायेँ भी लिखते थे | साहित्य और कला की संवेदना नाजिम इन्हीं दोनों से मिली थी | बचपन में ही नाजिम अपने गाँव से इस्तांबुल चले आये | एक बार गाँव छूटा फिर दोबारा लौटना नसीब नहीं हुआ | नाजिम निर्वासित जीवन जिए और निर्वासित ही मरे | नाजिम की प्रारम्भिक शिक्षा इस्तांबुल में ही हुई | बाद में उन्होंने नवल अकेडेमी में दाखिला लिया जो उस समय युवा-तुर्कों का सपना होता था | पर पहले विश्व-युद्ध के शुरू होने और ऑटोमन साम्राज्य के रुख से नाजिम का मन खिन्न होने लगा | १९१७ में रूसी क्रांति ने नाजिम को नयी रौशनी से भर दिया वे साम्यवादी सपनों में जीने लगे | रूस में समाजवादी-गणतंत्र की स्थापना को वे दुनिया में सामाजिक न्याय की बुलंदी के रूप में देख रहे थे | इसी बीच उनका विवाह हुआ | १९२१ में वे और उनके एक मित्र वा-नु ने छिपकर बार्डर पार कर सोवियत रूस में घुसने की कोशिश की | पकडे गए पर दोनों ने अपने-अपने परिवार की उच्च कुलीनता और रुतबे का परिचय दिया नाजिम ने अपने अपने दादा के ओहदे का और वा-नु ने अपने गवर्नर पिता के ओहदे का | फिर क्या था दोनों पहुँच गए अपने सपनों के देश | मास्को में दो सालों तक नाजिम रहे वहाँ मास्को विश्वविद्यालय से कम्युनिज्म की शिक्षा-दीक्षा और लोगों की सोहबत ने नाजिम को पूरी तरह कम्युनिस्ट रंग में रंग गए | १९२४ में वे तुर्की लौटे और तुर्की कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए और किसानों व मजदूरों के अधिकारों के लिए काम शुरू किया | साथ ही उन्होंने पार्टी की सचित्र  कम्युनिस्ट पत्रिका  को पूरी तरह संभाल लिया लेखन | इस पत्रिका में साम्राज्यवाद विरोधी अधिकांशतः कवितायेँ, लेख और चित्र नाजिम हिकमत ही लिखते और बनाते | नाजिम हिकमत केवल कवि मात्र नहीं थे वे एक अच्छे चित्रकार, नाटककार, उपन्यासकार और संगीतकार भी थे | एक साल बीतते-बिताते ही उनपर देशद्रोह का आरोप लगाकर १५ साल जेल की सजा सुनायी गयी | वे किसी तरह भागकर रूस पहुंचे | वहाँ उनकी मुलाकात मायकोवस्की से हुई | मायकोवस्की ने उन्हें लेनिन से मिलाया | तय हुआ की नाजिम को अपने देश में जाकर कम्युनिस्ट पार्टी का कम संभालना चाहिए | दो सालों के बाद वे पुनः १९२८ में तुर्की लौटे और फिर से तुर्की कम्युनिस्ट पार्टी और पत्रिका के लिए काम करने लगे इस बीच वे कई बार जेल आते जाते रहे | कभी भडकाऊ पोस्टर चिपकाने के आरोप में तो कभी दूसरे आरोपों में | पर पुख्ता आरोप न होने के कारण छूटते रहे |
अपनी पत्नी बच्चे और विधवा माँ से बेखबर नाजिम ने अपने को दिन रात काम में झोंक दिया | पार्टी के लिए प्रूफ-रीडिंग, अनुवाद, पत्रकारिता के अलावा अपना लेखन | ११९२९ से १९३६ के बीच उनकी नौ किताबें प्रकाशित हुईं | १९३८ में नाजिम फिर गिरफ्तार कर लिए गए और मिलिटरी  कोर्ट ने २८ साल की सजा मुकर्रर की | इस बार का आरोप अत्यधिक गंभीर और संगीन माना गया | आरोप था मिलिटरी कैडेट्स के बीच उनकी लंबी और पूर्णतः राजनितिक कविता शेह बेद्रेत्तेनीन दास्ताने’ (शेख बदरुद्दीन की दास्ताँ ) का वितरण | महाकाव्यात्मक शैली की यह कविता पंद्रहवीं शताब्दी में ऑटोमन साम्राज्य के शोषण और अन्याय के विरूद्ध बगावत करने वाले एक बागी शेख बदरुद्दीन की दास्ताँ है | शेख बदरुद्दीन का सम्बन्ध राजसी सेल्ज्युक खानदान से था उसके दादा कायकॉस-द्वितीय रूम के राजा थे | उसके पिता इजरायल अनातोलियन शहर सिमाव में जज थे | बदरुद्दीन ने ज्योतिष, गाणित, तर्कशास्त्र और दर्शन की पढाई की थी | १४१६ में उसने अनातोलियन सुलतान के खिलाफ बगावत कर दिया | उसकी मांग थी की जनता में सबको बराबर जमीन का बंटवारा किया जाय और ऑटोमन सरकार के स्थानीय प्रतिनिधियों द्वारा जबरन अधिक कर न वसूला जाय | सरकार ने बेरहमी से इस विद्रोह को कुचला लगभग दस हज़ार लोग मारे गए | बदरुद्दीन को पकड कर फांसी पर लटका दिया गया | सेना के जवानों के बीच इस कविता का पहुंचना और उनका पढ़ा जाना सरकार के लिए खलबली मचाने जैसा था | नाजिम हिकमत को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया | फिर शुरू हुयी नाजिम की लंबी यातनादायी यात्रा | पाब्लो नेरुदा ने नाजिम की इस यातना के बारे में लिखा है | जब जेल से नाजिम हिकमत को ट्रायल के लिए लाया गया तो जिस तरह से उनको टार्चर किया गया उसके बारे में नेरुदा लिखते हैं, नौसेना के एक विशाल युद्धपोत को ही न्यायलय में बदल दिया गया | सुनवाई के लिए नाजिम को उस युद्धपोत पर लाया गया और सुनवाई से पहले उसको बाध्य किया गया कि जब तक कार्रवाई शुरू नहीं होती तब तक युद्धपोत के उपरी हिस्से पर बिना रुके चलते रहो | नाजिम वैसे ही जेल में कमज़ोर हो चुका था | चलते-चलते उसके पैरों ने जवाब दे दिया वह शौचालय से थोड़ी दूर पर गिर पड़ा | पर, जब मेरे प्रिय कवि मित्र ने देखा कि कुछ आँखें उसको देख रही हैं और उसका परिहास कर रही हैं तो वह अपनी पूरी क्षमता से एक बार फिर उठा और चलने लगा | चलने के साथ-साथ उसने अपनी कविताओं को गुनगुनाना शुरू किया पहले धीरे-धीरे फिर वह स्वर ऊँचा होता चला गया जैसे पूरा कलेजा निकाल कर वह गा रहा हो |
जब दूसरा विश्व-युद्ध लड़ा जा रहा था नाजिम हिकमत जेल में शांति और न्याय के लिए लड़ रहे थे | अपने लगभग बारह सालों के जेल की इस दुनिया को उन्होंने यूँ ही जाया नहीं किया | पूरी रचनात्मक उर्जा से उन्होंने खूब लिखा और रचा | कविता, डायरी, नाटक, उपन्यास, चित्र सबकुछ | इसी जेल में उन्होंने मेमलेकतिनदेन इंसान मंज़रलारी’ (दी ह्यूमन लैंडस्केप) जैसी महान रचना की | यह कविता नाजिम के महत्वाकांक्षी सपने का सचमुच एक लैंडस्केप है | २२ हज्जार पंक्तियों की इस कविता में नाजिम ने आधुनिक तुर्की जीवन और समाज के साथ-साथ व्यक्तियों का जो सिनेमाई नाटकीय चित्रांकन किया है वह अद्भुत है | यह कविता बीसवीं शताब्दी की विश्व कविता का अनोखा वृत्तान्त है | इस कविता में पाब्लो पिकासो का चित्रात्मक प्रभाव , वाल्ट व्हिटमैन का स्व और मायकोवस्की की तरह का साहस दिखता है | जेल में नाजिम की यात्रा लंबी होती जा रही थी | विश्व-युद्ध भी लड़ा जा चुका था | नाजिम अब एक अंतर्राष्ट्रीय कवि हो गए थे | १९४९ में अंतर्राष्ट्रीय विरादरी के लेखकों, कलाकारों और नाजिम के चाहने वालों ने नाजी की रिहाई का प्रस्ताव पारित किया जिसमें त्रिस्तान त्जारा, लुई अरांगा, पाब्लो नेरुदा, पाब्लो पिकासो, ज्याँ पॉल सार्त्र, सिमौन द  बोउवा, अल्बेयर कामू, पाब्लो रॉबिन्सन जैसी हस्तियाँ मौजूद थीं | १९५० में नाजिम को नोबेल का शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गयी | इसी वर्ष नाजिम हिकमत ने जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया | आमरण अनशन के बीच ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा | जेल से उन्हें रिहा किये जाने के लिए तुर्की के प्रसिद्द तीन कवि ओरहान वेली, मेलिह जेव्देत आन्दाय और औक्ताय रिफत भूख हड़ताल पर बैठ गए | राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दबावों के चलते १९५० में उन्हें इस शर्त पर रिहा किया गया कि वे तुर्की में नहीं रहेंगे | नाजिम देश छोड़कर सोवियत रूस चले गए | उनके परिवार के सदस्यों ने कई बार उनसे मिलने जाने के लिए तुर्की सरकार को वीसा के लिए अर्जी दी पर सरकार तैयार नहीं हुई | विश्व के लिए नाजिम हिकमत अब एक महत्वपूर्ण शख्सियत बन चुके थे | उन्होंने शांति और अमन के लिए विश्व भर की यात्राएं शुरू कीं | उन्होंने पूरे योरोप की यात्रा की एशिया और अफ्रीका के कुछ देशों की यात्रा की केवल अमरीका रह गया | उन्होंने लिखा है, मैंने अपने सपनों के साथ योरोप, एशिया और अफ्रीका की यात्रायें कीं केवल अमरीकियों ने मुझे वीसा नहीं दिया | इस थका देने वाली यात्रा और अव्यवस्थित दिनचर्या के चलते १९५२ में उन्हें दूसरी बार दिल का दौरा पड़ा | अगला अटैक जानलेवा हो सकता है यह जानकार भी वह कहाँ रुकने वाले थे | वह तो अपनी सारी व्यथा को भूलकर उन करोंड़ों लोगों की व्यथा जी रहे थे जो शोषण, अन्याय और जुल्म के बेवजह शिकार थे आज भी हैं | १९६३ में मास्को में नाजिम हिकमत को तीसरा और आखिरी दौरा पड़ा और वह जेल और निर्वासन की सारी व्यथा जीकर इस दुनिया से विदा हुए :
अँधेरे औउजाले के भयानक द्वंद्व
की सारी व्यथा जीकर
गुंथन-उलझाव के नक्षे बनाने,
भयंकर बात मुंह से निकल आती है
भयंकर बात स्वयं प्रसूत होती है |
तिमिर में समय झरता है,
व उसके गिर रहे एक-एक कण से
चिनगियों का दल निकलता है |
अँधेरे वृक्ष में से गहन आभ्यंतर
सुगंधें भभक उठाती हैं
की तन-मन में निराली फैलती ऊष्मा
व उन पर चन्द्र की लपटें मनोहारी फ़ैल जाती हैं |
की मेरी छाँह
अपनी बाँह फैलाती
व अपने प्रिय्तारों के ऊष्मवस् व्यक्तित्व
की दुर्दांत
उन्माद बिजलियों में वह
अनेकों बिजलियों से खेल जाती है,
जगत सन्दर्भ, अपने स्वयं के सर्वत्र फैलती
अपने प्रिय्तारों के स्वप्न, उनके विचारों की वेदना जीकर
व्यथित अंगार बनती है;
हिलगकर सौ लगावों से भरी,
मृदु झाइयों की थरथरी
वह और अगले स्वप्न का विस्तार बनती है |
नाजिम हिकमत स्वप्न का विस्तार बनकर चले तो गए पर जाने के बाद भी बहुत कुछ बाकी था | २००१ में उनकी जन-शताब्दी के मौके पर ५० लाख लोगों के हस्ताक्षर से तुर्की सरकार से यह निवेदन किया गया कि उनकी वह नागरिकता पुनर्बहाल कर दी जाय जिसे वे जीते जी नहीं पा सके | पर सरकार को शायद उनकी यह घर वापसी अभी मंजूर नहीं था | जैसा ऊपर लिखा गया कि अगले आठ सालों तक वह निर्वासित ही रहे सन् २००९ में उनकी तुर्की नागरिकता पुनर्बहाल हुयी | अब तो स्कूलों में नाजिम की दो कवितायें पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं | सार्त्र ने हिकमत के लिए कभी कहा था, उसके जीवन और रचना में कोई फर्क नहीं | उसका कवि व्यक्तित्व एक हीरो की तरह बढ़ता है | आधुनिक दुनिया की छिछोरी और छुद्र बुर्जुआजी के बीच एक अडिग और अटल कमिटमेंट का कवि-व्यक्तित्व | कविता को जिसने जीवन और मरण का विषय माना ऐसा काव्य- नायक |

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