27 जून 2013

कौन था (?) मुल्ला नसीरुद्दीन





समकालीन सरोकार, मई-जून २०१३ 

कौन था (?) मुल्ला नसीरुद्दीन
                          
                         विनोद तिवारी

मुल्ला नसरुद्दीन एक शाम अपने घर से निकला | उसने सोचा कि चलो आज अपने दो-चार मित्रों के घर चला जाय और उनसे भेंट-मुलाकात की जाय | वह अभी घर से निकलकर कुछ ही कदम चला था कि दूसरे गाँव से उसका एक दोस्त जलाल आते हुए दिखा | जलाल जब पास आया तो उसने कहा कि मैं तो तुमसे ही मिलने आ रहा था तुम कहाँ जा रहे हो | नसरुद्दीन ने कहा, तुम घर चलो, मैं जरूरी काम से अपने दो-तीन मित्रों से मिलने जा रहा हूँ और थोड़ी देर में लौटकर आता हूँ | फिर मुल्ला को पता नहीं क्या सूझा कि उसने जलाल से पूछा कि, अगर तुम थके न हो तो मेरे साथ तुम भी चल सकते हो | जलाल ने कहा, मेरे कपड़े सब धूल-मिट्टी से सन गए हैं अगर तुम मुझे अपने कपड़े दे दो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूँ | तुम्हारे बगैर यहां बैठकर मैं क्या करूंगा? इसी बहाने मैं भी तुम्हारे मित्रों से मिल लूँगा | नसरुद्दीन लौट कर घर आया और उसने अपने सबसे अच्छे कपड़े जलाल को दे दिए | जलाल तैयार हुआ फिर वे दोनों साथ निकल पड़े |
जिस पहले घर वे दोनों पहुंचे वहां नसरुद्दीन ने कहा, मैं इनसे आपका परिचय करा दूं, ये हैं मेरे दोस्त जलाल और जो कपड़े इन्होंने पहने हैं वे मेरे हैं | जलाल यह सुनकर बहुत हैरान हुआ | इस सच को कहने की कोई भी जरुरत न थी | बाहर निकलते ही जलाल ने कहा, कैसी बात करते हो नसरुद्दीन ! वहाँ अपने मित्र के सामने कपड़ों की बात उठाने की क्या जरूरत थी? अब देखो, दूसरे घर में कपड़ों की कोई बात मत उठाना | वे दूसरे घर पहुंचे | नसरुद्दीन ने कहा, इनसे परिचय करा दूं ये हैं मेरे पुराने मित्र जलाल; रही कपड़ों की बात, सो इनके ही हैं, मेरे नहीं हैं | जलाल फिर हैरान हुआ | बाहर निकलकर उसने कहा, तुम्हें हो क्या गया है? इस बात को उठाने की क्या जरूरत थी कि कपड़े किसके हैं? और यह कहना भी कि इनके ही हैं, शक पैदा करता है, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, मुझे माफ करो मित्र ! दरअसल में मैं मुश्किल में पड़ गया था वह पहली बार वाली बात मेरे मन में गूंजती रह गई, उसी की प्रतिक्रिया हो गई | मैंने सोचा कि जो पहली बार में गलती हो गई थी उसको सुधार लूं | इसलिए, मैंने कहा कि कपड़े इन्हीं के हैं मेरे नहीं | जलाल ने कहा, अब ध्यान रखना कि इसकी बात ही न उठे यह बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए | वे तीसरे मित्र के घर पहुंचे | नसरुद्दीन ने कहा, ये हैं मेरे दोस्त जलाल दूर गाँव से आये हैं रही कपड़ों की बात, सो उठाना उचित नहीं है | क्यों जलाल ठीक है न, कपड़ों की बात उठाने की कोई ज़रुरत ही नहीं है | कपड़े किसी के भी हों, उससे क्या लेना देना | मेरे हों या इनके हों कपड़ों की बात यहाँ उठाने का कोई मतलब ही नहीं है | बाहर निकलकर जलाल ने कहा, अब मैं तुम्हारे साथ और किसी के घर नहीं जा सकूंगा | मैं हैरान हूं, तुम्हें हो क्या गया है | नसरुद्दीन बोला, दोस्त ! मैं अपने ही जाल में फंस गया हूं | मेरे भीतर जो मेरा मैंजम कर बैठा है यह उसी की प्रतिक्रियाएं हुई चली जा रही हैं | मैंने सोचा कि शुरू में दोनों बातें भूल से हो गयीं, कि मैंने अपना कहा और फिर तुम्हारा कहा तो मैंने तय किया कि अब मुझे कुछ भी नहीं कहना चाहिए, यही सोचकर भीतर गया था | अंदर पहुँच कर बार-बार मैं अपने को समझा रहा था कि यहाँ कपड़ों की बात करना बिलकुल ठीक नहीं है और उन दोनों की प्रतिक्रिया यह हुई कि मेरे मुंह से यह निकल गया और जब निकल गया तो समझाना जरूरी हो गया कि कपड़े किसी के भी हों, क्या लेना-देना | 
दरअसल, मुल्ला के ये मित्र जलाल ऐसे मित्र थे जो हर बात में मैं यह करता हूँ, मैं वह करता हूँ, मैंने उसे आज खूब उल्लू बनाया, आदि-आदि |’ मैं, मैं, मैं | जलाल अपने मम`’ से कभी बाहर आता ही नहीं था | साथ ही मुल्ला नसीरुद्दीन की प्रसिद्धि और यश से अंदर ही अंदर कुढता था | मुल्ला ने मौका पाते ही जलाल को यह आभास करा दिया कि मैंक्या है | हम सबके अंदर जो एक मैंबैठा है वह हमेशा दूसरे के अपमान में ही अपनी तुष्टि पाता है | भले ही वह गलत हो | हम उस गलत को ही सही बनाने और प्रमाणित करने के लिए तमाम तर्क-वितर्क करते चले जाते हैं | मुल्ला नसीरूदीन के नाम से ऐसे न जाने कितने हज़ारों-हज़ार किस्से-कहानियाँ, चुटकुले, हाज़िर-जवाब उक्तियाँ दुनिया भर के लोकाख्यानों में प्रचलित हैं | मुल्ला नसीरुद्दीन आज केवल एक संज्ञा भर नहीं है वह अब एक चरित है | मिथ में बदल चुका एक ऐसा विटी और हाजिर-जवाब, परिहास और बुद्धि-चातुर्य से लबरेज चरित जिसके नाम से दुनिया भर में  किस्से-कहानियाँ, चुटकुले, मजाक गढ़ कर सुने सुनाये जाते हैं | मुल्ला नसीरूद्दीन कोई एक नहीं है अलग-अलग देशों के अलग-अलग मुल्ला नसीरुद्दीन हैं | यह रूढ़ हो चुकी एक ऐसी संज्ञा है जिसे भिन्न-भिन्न देशों में ऐसे किस्से कहानियों और चुटकुलों के लिए प्रयोग में लाया जाता है | अरब, ईरान, हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्की, योरोप, चीन आदि देशों में मुल्ला नसीरूद्दीन थोड़े बहुत नाम के हेर-फेर से प्रचलित है | अरब, ईरान, हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में यह मुल्ला नसीरुद्दीन है तो योरोपीय देशों और चीन में यह एफेन्दी या अफेंदम के नाम से मशहूर है | तुर्की में यह नाम नसीरुद्दीन होद्ज़ा है |
दरअसल, यह देश-काल की सीमाओं और इतिहास-भूगोल की लकीरों और प्रमाणों से पार विभिन्न संस्कृतियों की आवाजाही और घुलन-मिलन से निर्मित लोक-चित्त में गहरे पसरे वाचिक परम्पराओं का एक ऐसा सच है जिसे किसी प्रमाणकी दरकार नहीं | इसको ठीक इस तरह भी समझा जा सकता है जैसे भारत में व्यासोंकी परम्परा आज भी मौजूद है | पर व्यास तो एक ही हुए महाभारत के रचयिता | पर, क्या व्यास की तरह मुल्ला नसीरुद्दीन भी एक मिथकीय चरित्र था/है ? नहीं मुल्ला नसीरुद्दीन मिथकीय चरित नहीं था | तो फिर कौन था मुल्ला नसीरूदीन ? अलग-अलग दावेदारियाँ हैं कोई मानता है की मुल्ला हमारे हैं तो कोई कहता है मुल्ला हमारे हैं | हिन्दुस्तान में भी मुल्ला नसीरुद्दीन को लेकर यही दावेदारी है कि मुल्ला हमारे हैं | जब मैं तुर्की आया तो पता लगा कि, मुल्ला नसीरुद्दीन पैदायशी तुर्क थे | जहाँ वे पैदा हुए उस गांव का भी उल्लेख किया गया | यह भी बताया गया कि हर साल जुलाई के महीने में वहाँ पर मुल्ला नसीरुद्दीन के नाम से मेला लगता है जिसमें भिन्न-भिन्न तरह के लोक-संस्कृति और लोक-साहित्य से सम्बंधित आयोजन होते हैं | हिन्दुस्तान में मुल्ला नसीरुद्दीन के किस्से पढ़ा था | अपनी हाज़िर-ज़वाबी और तर्क-शक्ति के नाते वे किस्से बहुत पसंद आये थे | यहाँ, तुर्की में एक किताब हाथ लगी- वन्स देयर वाज ट्वाइस देयर वाज नॉट : फिफ्टी टर्किश फोकटेल ऑफ़ नसीरुद्दीन होद्जा | माइकल शेल्टन द्वारा लिखित इस पुस्तक में एक प्रामाणिक भूमिका के साथ मुल्ला नसीरुद्दीन की पचास तुर्की लोककथाओं का तुर्की से अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है | माइकल शेल्टन पिछले बारह वर्षों से अपनी पत्नी जोयान के साथ तुर्की में रह रहे हैं | वे एक फ्रीलान्सलेखक और पत्रकार हैं | तुर्की संस्कृति और उसके ऐतिहासिक महत्त्व से बेहद प्रभावित | उन्होंने छह तुर्की लड़कियों को गोद लिया है | तुर्की संस्कृति के महत्व को जानने समझने के क्रम में ही वे मुल्ला नासीरुद्दीन के करीब पहुंचे | इस पुस्तक के पढ़ने के बाद मन मचलने लगा कि मुल्ला के गाँव चला जाय | ‘शिवरीहिसारमुल्ला के गाँव का नाम है जहाँ मुल्ला नसीरूदीन तेरहवीं शताब्दी में पैदा हुए थे | यह कोय (तुर्की में गाँव को कोय खाते हैं) अंकारा और एस्कीशेहिरके बीच में पड़ता है | अंकारा से लगभग ४५ किलोमीटर दूर | यह हिस्सा मध्य अनातोलिया का पुराना हिस्सा है | तेरहवीं शताब्दी में यहाँ तामेरलेन का शासन था | यह वही तामेरलेन है जिसे हम तैमूरलंग के नाम से जानते हैं और जिसने दक्षिण-पूर्वी एशिया, मध्य एशिया, अफ्रीका, मंगोलिया, योरोप के कुछ हिस्सों पर आक्रमण किया था और अपने आतंक का कहर बरपाया था | तैमूरलंग ने दिल्ली पर १३९८ में आक्रमण कर तबाही मचाई थी | उस समय दिल्ली पर नसीरुद्दीन मुहम्मद शाह तुगलक का शासन था | संभव है कि जहाँ-जहाँ तैमूर गया हो उसके साथ-साथ मुल्ला नसीरुद्दीन भी रहा हो | क्योंकि, दुनिया के उन्हीं देशों में मुल्ला नसीरुद्दीन जिन्दा है जहाँ तैमूर के आक्रमण हुए | आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिजेंडरीको निजंधरीकथाओं के रूप में व्याख्यायित करते हुए यह मन है कि, विभिन्न गण-समाजों के आपसी तालमेल तथा भिन्न-भिन्न जातियों, समूहों गणों और जनपदों के मिलने-जुलने से जो संस्कृति विकसित हुयी और जो सभ्यताएँ पनपीं उनमें देश-काल की सीमाएँ खत्म हो गयीं |
एस्कीशेहिरतुर्की के सबसे पुराने बसे शहरों में से है | ‘एस्कीका अर्थ है पुराना और शेहिरतो शहर है ही | यहाँ जो लोग दिल्ली घूमकर आये हैं वे बताते हैं कि एस्की दिल्लीऔर येनी दिल्लीदोनों देखा | ‘येनी दिल्लीका मतलब नयी दिल्ली | तो मैंने भी एस्किशेहिर जाने और मुल्ला का गाँव देखने कि योजना बना डाली और पहुँच गया शिवरीहिसार’ | अंकारा से जो मुख्य सड़क एस्कीशेहिरको जाती है उस पर ४०-४५ किलोमीटर चलने पर एक क़स्बा पड़ता है जिसका नाम शिवरीहिसारहै | इस चौराहे से दायें मुड़कर थोड़ी दूर चलने पर नसीरुद्दीन का गाँव पड़ता है | मेरे साथ मेरा एक छात्र भी था जिससे सुविधाजनक ढंग से मैं गांव में पहुँच गया | पर, तुर्की के कोय’ (गाँव) भारतीय गाँवों की तरह नहीं हैं | प्राकृतिक सुंदरता से भरे हुए आधुनिक सुख-सुविधाओं से संपन्न छोटे-छोटे गांव | घर-बाहर दोनों साफ़-सुथरे | शिवरीहिसारऔर उससे आगे  एस्कीशेहिर देखकर लगा कि, इन्हें पुराना क्यों कहा जाता है देखने में तो ये कहीं से भी पुराने नहीं लगते |  नाम के ठीक विपरीत | वैसे ही जैसे भारतेंदु ने सरयू पार की यात्रा में बस्ती के लिए लिखा है – ‘याकौ यदि बस्ती कहूँ तो काकौ कहूँ उजाड़ |’ एकदम विपरीत प्रभाव | शिवरीहिसारमें जिस घर को मुल्ला का जन्मस्थान मान जाता है वह तुर्की सरकार द्वारा लोक-संस्कृति की दृष्टि से विकसित किया गया एक महत्वपूर्ण स्मारक है |
मुल्ला नसीरुद्दीन के बारे में तरह-तरह कि किम्वदंतियां प्रचलित हैं | वह तुर्की लोक-कथाओं का अलहदा नायक है | वह फ़कीर है | वह सूफी है | वह हकीम है | वह मंत्री है | वह जज है | वह ज्योतिषी है | वह खगोलविद है | जिसकी समस्या का निदान जिस चतुराई से किया उसने मुल्ला को वही मान लिया | एक बार मुल्ला के घर के सामने से सड़क पर एक स्त्री अकेली जा रही थी | उसके पीछे एक आदमी चल रहा था | आदमी ने लपक कर स्त्री को अपनी बाहों में भरकर चूम लिया | स्त्री उसे भला-बुरा कहने लगी | शोर सुनकर मुल्ला बाहर निकल कर  आये | पूछा, क्या हुआ ? स्त्री ने कहा कि, इस आदमी ने मेरे साथ बद्तमीजी की है | इसको मैं जानती तक नहीं फिर इसकी हिम्मत कैसे हुयी मुझे चूमने की | मैं इसकी इस गुस्ताखी का बदला लेकर रहूंगी | मुझे न्याय चाहिए | मुल्ला नसीरुद्दीन ने बड़े ध्यानपूर्वक स्त्री को देखा और कहा हाँ तुम्हें मुकम्मल न्याय मिलना चाहिए, तुम ऐसा करो कि, इस आदमी का चुम्बन लेकर अपना बदला चुकाओ | स्त्री का चेहरा शर्म से लाल हो गया और वह धत् करके बांकी मुस्कान होंठों पर लिये वहाँ से चली गयी | तो, यह था मुल्ला का न्याय | अपने त्वरित बुद्धि और चतुराई से विकट से विकट परिस्थिति और संकट को हँसी-मजाक में हल कर देना मुल्ला नसीरुद्दीन की खासियत थी | मध्य-युग में तुर्की में आम जन-जीवन में गधे का खास महत्व था | सामन ढुलाई से लेकर सवारी करने तक गधा उपयोग में लाया जाता था | वह तुर्की जन-जीवन का एक उपयोगी पारिवारिक सदस्य की तरह था | मुल्ला नसीरुद्दीन भी गधा की सवारी करता था | पर उनका अंदाज विलक्षण था | वह गधे पर घूमकर उल्टा बैठता था | गधे के मुंह की ओर उसकी पीठ होती थी | सब यह देख कर हैरान होते कि यह कैसा मूर्ख है | एक बार कुछ लोगों ने मुल्ला से यह पूछा कि तुम गधे पर उल्टा क्यों बैठते हो ? मुल्ला का चट जवाब, ताकि, लोग मुझे गधे का विपरीत माने | शिवरीहिसारके मुख्य चौराहे पर गधे पर उल्टी दिशा में बैठे हुए सूफी दरवेश की साज-सज्जा में एक व्यक्ति कि विशालकाय प्रतिमा लगी है जो कि नसीरुद्दीन होद्जा की है |
लोक-संस्कृति में लोक-आख्यानों, कहावतों, चुटकुलों, मुकरियों आदि का विशेष महत्व रहा है | ऊपरी तौर पर तो अभिव्यक्ति के इन रूपों को सतही  मजाक मानकर क्षणिक मनोरंजन का साधन मात्र समझ लिया जाता है पर अपनी आंतरिक संरचना में इन वाचिक रूपों में समय-समाज की विद्रूपताओं का ऐसा उपहासात्मक-चित्र होता है जो अपनी अर्थ-छवियों में प्रतिरोधी और आलोचनात्मक होते हैं | लोक-प्रतिरोध का यह भी एक खास तरीका था | उस भयानक सेंसरशिप के ज़माने में विद्रूपताओं को व्यंग्य और उपहास के जरिये जन-जन तक पहुँचाने की एक विशेष शैली के रूप में जन-मानस इसका उपयोग करता रहा है |
इस तरह मुल्ला नसीरुद्दीन मध्यकाल का एक ऐसा ऐतिहासिक चरित्र था जो अपनी प्रसिद्धि के चलते संज्ञा न रहकर एक विशेषण बन गया और भूगोल और तवारीख की सारी हदें पार कर दुनिया भर के कई देशों में अपनी बुद्धि और चतुरायी के किस्सों के साथ लोगों के बीच आज भी जिन्दा है |

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युवा आलोचक | पक्षधर पत्रिका का संपादन-प्रकाशन | दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी का अध्यापन | आजकल अंकारा विश्वविद्यालय, अंकारा (तुर्की) में विजिटिंग प्रोफ़ेसर |
ई-मेल :  tiwarivinod4@gmail.com फोन:+903124418757 मोबा. +9005303639128